शहरी और ग्रामीण गरीबों पर कोविड-19 का प्रभाव, 

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शहरी और ग्रामीण गरीबों पर कोविड-19 का प्रभाव


हाल ही में हंगर वॉच (Hunger Watch) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोविड-19 ने शहरी गरीबों को अधिक भुखमरी तथा ग्रामीण गरीबों से ज़्यादा कुपोषण की स्थिति में पहुँचा दिया है।


हंगर वॉच सामाजिक समूहों और आंदोलनों का एक संगठन है।

इससे पहले संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme) के एक अध्ययन में पाया गया था कि लगभग 207 मिलियन लोग कोरोनावायरस महामारी के गंभीर दीर्घकालिक प्रभाव के कारण वर्ष 2030 तक अत्यधिक गरीब हो जाएंगे।

साथ ही प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) द्वारा किये गए एक नए शोध में पाया गया है कि कोविड-19 ने लगभग 32 मिलियन भारतीयों को मध्यम वर्ग से बाहर कर दिया है, जिससे भारत में गरीबी बढ़ गई है।

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प्रमुख  बिंदु


आर्थिक प्रभाव:


खाद्य असुरक्षा ने अधिक लोगों को श्रम बल में प्रवेश करने के लिये प्रेरित किया है (उत्तरदाताओं के बीच श्रम बल में 55% की वृद्धि)।

इससे बाल श्रम में भी वृद्धि देखी गई

आर्थिक संकट गहरा रहा था क्योंकि नौकरी गंवाने वाले लोग अभी तक वैकल्पिक रोज़गार नहीं ढूँढ पाए थे और अनौपचारिक क्षेत्र में आजीविका के अवसर लॉकडाउन के बाद बहुत कम बन पाए थे।

आधे से अधिक शहरी उत्तरदाताओं के आय में आधा या एक चौथाई की कमी आई जबकि यह ग्रामीण उत्तरदाताओं के आय में यह कमी एक तिहाई से थोड़ी अधिक थी।


सार्वज़निक वितरण प्रणाली और सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं का कवरेज:


ग्रामीण निवासियों का एक बड़ा वर्ग सार्वज़निक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) के माध्यम से खाद्यान्न की वजह से महामारी से प्रेरित आर्थिक व्यवधान को खत्म कर पाया, लेकिन शहरी गरीबों तक ऐसे राशन की पहुँच बहुत कम थी।

सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का ग्रामीण गरीबों के बीच अपेक्षाकृत बेहतर कवरेज था, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में पीडीएस की बेहतर पहुँच थी।

शहरी क्षेत्रों के घरों के एक बड़े हिस्से की राशन कार्डों तक पहुँच नहीं थी।


 पोषण और भूख:


 पोषण संबंधी गुणवत्ता और मात्रा में गिरावट शहरी उत्तरदाताओं में अधिक थी क्योंकि इन्हें भोजन खरीदने के लिये पैसे उधार लेने की आवश्यकता थी।

कुल मिलाकर, भूख और खाद्य असुरक्षा का स्तर उच्च रहा। अतः इस स्थिति में रोज़गार के नए अवसर, खाद्य सहायता जैसे उपायों के बिना सुधार की कम उम्मीद है।

 भारत का खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2018-19 (291.1 मिलियन टन) की तुलना में वर्ष 2019-20 (296.65 मिलियन टन) में 4% अधिक था, फिर भी भुखमरी की स्थिति पहले से व्यापक हो गई है और कुछ लोगों को तो पूरे दिन में आवश्यकता से कम भोजन मिल रहा है।

सामाजिक रूप से कमज़ोर समूहों जैसे- एकल महिलाओं के नेतृत्त्व वाले घर, विकलांग लोगों के घर, ट्रांसजेंडर आदि की स्थिति बहुत खराब हो गई थी।


राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़े:


 हंगर वॉच रिपोर्ट के आँकड़े चिंताजनक हैं, विशेषकर जब इन्हें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey- NFHS) के आँकड़ों के साथ मिलाकर देखते हैं।

NFHS के आँकड़ों ने कुपोषण के परिणामों में या तो बढ़ोत्तरी या ठहराव दर्शाया है, जैसे कि चाइल्ड स्टंटिंग और वेस्टिंग (Wasting) का प्रचलन तथा महिलाओं एवं बच्चों में एनीमिया का उच्च स्तर।


 कोविड के प्रभाव को कम करने के लिये सरकारी पहलें:


प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना।

भारतीय रिज़र्व बैंक का कोविड-19 आर्थिक राहत पैकेज।

आत्मनिर्भर भारत अभियान।


आगे की राह


 चूँकि अधिकांश गरीबों के पास पहले से ही कम आय थी, घरेलू आय में यह कमी भुखमरी को बढ़ावा देने वाले उत्प्रेरक के समान है। इसे कम करने के लिये शहरी क्षेत्रों में रियायती भोजन और रोज़गार की गारंटी के प्रावधान वाली योजनाओं सहित सामाजिक सुरक्षा उपायों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।


 स्रोत: डाउन टू अर्थ     source:- (down to earth

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